Jeevan Ki Bhent
Original price was: ₹350.00.₹214.00Current price is: ₹214.00.
नौ वीं कक्षा के एक विद्यार्थी ने गृहकार्य नहीं किया था। शिक्षिका ने उसे बुलाकर कारण पूछा। विद्यार्थी ने गंभीरता से कहा, ‘‘कल मेरा जन्मदिन था और शाम को हमारे घर में बहुत झगड़ा हो गया। सुबह मेरे पिताजी ने मुझे उपहार में एक पुस्तक दी थी। उसे मैं पढ़ रहा था। तभी मम्मी ने कहा कि वह बहुत थक गई है, इसलिए हलका होने के लिए वह पुस्तक उन्हें पढ़नी है। मेरी दादीजी कहती थीं कि मुझे छोटी को प्रतिदिन नई-नई कहानियाँ सुनानी होती हैं, इसलिए सबसे पहले यह पुस्तक उन्हें मिलनी चाहिए, तो मेरे दादाजी ने जिद की कि उनके पास अच्छी वाचन-सामग्री नहीं बची है, अतः वह पुस्तक उनको ही मिले। इतने में मेरे पापा ऑफिस से आए और मुझे धमकाने लगे कि गिफ्ट तो मुझे उन्होंने दी है, तो पुस्तक पहले उनको ही दूँ। इस पुस्तक के लिए घर में इतना बखेड़ा मचा कि मैं होमवर्क ही नहीं कर सका।’’ शिक्षिका ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘भला, वह कौन-सी पुस्तक है, मुझे दिखाना।’’ विद्यार्थी ने स्कूल बैग में से निकालकर पुस्तक शिक्षिका को दिखाई। शिक्षिका ने पुस्तक खोलकर कुछ पन्ने पलटे और विचार में डूब गई। उन्होंने विद्यार्थी से कहा, ‘‘तू पहले होमवर्क पूरा कर, तभी यह पुस्तक तुझे लौटाऊँगी।’’ वह सोचता रहा कि यदि आज फिर से घर में झगड़ा होगा, तो वह क्या करेगा? आप ही बताइए, वह बेचारा अब क्या करेगा?
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Jeevan Ki Bhent by Sanjiv Shah (Author)
कहानियाँ केवल मनोरंजन के लिए नहीं होतीं, कहानियों का मानव जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है, परंतु सभी पाठक कहानी-पठन से ऐसा लाभ नहीं उठा पाते।
एक ब्राह्मण अपनी गाय लेकर दूसरे गाँव जा रहा था। तीन ठगों ने ब्राह्मण को गाय के साथ देखा और उनकी नीयत बिगड़ गई। उन्होंने ब्राह्मण के पास से गाय छीन लेने का षड्यंत्र रचा।अपनी बनाई योजना के अनुसार, पहला ठग ब्राह्मण को सामने से जाकर मिला और बोला, “क्यों महाराज! यह गधा लेकर कहाँ चले?” ब्राह्मण ने तुरंत प्रतिवाद किया, “यह गधा नहीं है, गाय है, दिखाई नहीं देता?” चोर तुरंत बोला, “किसको दिखाई नहीं देता, यह तो आप आगे जाओगे, लोग आपका उपहास करेंगे, तब आपकी समझ में आ जाएगा…मुझे क्या?”ब्राह्मण गुस्से में बड़बड़ाता हुआ आगे बढ़ा, इतने में थोड़ी देर बाद दूसरा ठग सामने से मिला, “अरे ब्राह्मण? तेरा दिमाग खराब हो गया है या और कुछ? यह गधा लेकर कहाँ चला?” ब्राह्मण इस बार तुरंत प्रतिक्रिया न दे सका। वह थोड़ा डरकर चौंक गया, मानो अपने आपसे बात कर रहा हो, इस तरह वह धीरे से बोला, “यह गधा कहाँ है, यह तो गाय है।” ठग खड़खड़ाकर जोर से हँस पड़ा, “लो इन्हें दिनदहाड़े गधे में गाय दिख रही है।” कहता हुआ चला गया।उलझन में पड़ा, विचारों में खोया ब्राह्मण सिर झुकाए आगे चला। थोड़ा आगे बढ़ा और उसे रास्ते में तीसरा ठग मिला, “पंडितजी, यह विचित्र जुलूस लेकर कहाँ निकले, बुद्धि भ्रष्ट हो गई है क्या?” ब्राह्मण चुप ही रहा। ठग ने आगे कहा, “मेहरबान, आगे बस्ती आनेवाली है, लोग पंडित को गधे के साथ देखेंगे, तो जीवनभर की इज्जत धूल में मिल जाएगी।” ब्राह्मण ने कुछ बोलने के लिए मुँह खोला, पर शब्द नहीं निकले। ठग तो गरदन हिलाने लगा, “लोगों को ऐसी कुबुद्धि कैसे सूझती है।” और वह बड़बड़ाता हुआ आगे निकल गया।अब ब्राह्मण एकदम दुविधा में पड़ गया। वह उसी जगह ठिठक गया। मुड़-मुड़कर, आँखें मल-मलकर उसने देखा, पर उसे तो अभी भी गाय ही दिखाई देती थी, परंतु तीन-तीन लोगों ने इस प्राणी को गाय नहीं, गधा कहा है। तीनों लोग तो झूठ नहीं बोलेंगे। वाकई में यह गधा हो और मुझे गाय दिख रही हो तो, सचमुच लोग मेरी हँसी उड़ाएँगे, तो क्या करूँ?
अनुक्रम
कहानी-पठन की रीतिविभाग-1. जैसा मूल वैसा फलआत्मविश्वास का हननटोलाशाही के पूर्वग्रहपुनरावर्तन का सत्यजैसी दृष्टि, वैसा व्यवहारआप भला तो जग भलाअधकचरा सुननाचश्मा एवं दृष्टिदृष्टि परिवर्तनजैसी दृष्टि, वैसा समाचारसिद्धांतों का प्रकाशस्तंभजैसी दृष्टि, वैसी सृष्टिकहिए, आपकी पसंद क्या है?जीवन हमारा चयनआलोचकों से कैसे बचेंतीन प्रश्नों की परीक्षाकीचड़ या ताराबिना ध्यान रखे बोलनेवाला अपराधी नहीं है?आपत्ति में अवसरजीवन के अवसरबुद्धिमान गधाजोखिम उठाना चाहिए या नहीं?अवरोध या विकाससच्ची होशियारीअपमान का उपहारसमय का वजननिरर्थक पुनरावर्तन
Continue….
Sanjiv Shah
लेखक संजीव शाह, ओएसिस सेल्फ डेवलपमेंट के प्रशिक्षक हैं। मात्र 25 वर्ष की आयु में अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर संजीव ने मेकैनिकल इंजीनियर के अपने पेशे को छोड़ा और उन सैकड़ों युवाओं का नेतृत्व किया, जो अपने तथा समाज के विकास में योगदान करना चाहते थे। इसका परिणाम ‘ओएसिस’ नाम के युवाओं के एक संगठन के रूप में सामने आया, जिसका गठन 1989 में किया गया। आगे चलकर, राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त युवाओं का नेतृत्व करने वाले और सामाजिक कार्यकर्ता से वे एक लेखक तथा अनेक सीईओ, परिवारों, समुदायों और संगठनों को पेशेवर सलाह देने वाले की भूमिका में आए। उनके प्रबंधन में, ‘ओएसिस वैली’ नाम का एक अनोखा संस्थान वडोदरा के करीब बनाया गया है, जो चरित्र निर्माण के प्रति समर्पित अपनी तरह का पहला एकमात्र संस्थान है। उन्होंने 65 से अधिक पुस्तकों और बुकलेट की रचना की है, जिनकी 10 लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी है। इस विशिष्ट उपलब्धि ने वैज्ञानिक स्वयं-सहायता की पीढ़ी के बीच उन्हें इस क्षेत्र का सबसे सम्मानित और सर्वाधिक लोकप्रिय समसामयिक लेखक बना दिया है।
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Publisher : Prabhat Prakashan Pvt. Ltd.; First Edition (29 November 2021); Prabhat Prakashan Pvt. Ltd., 4/19, Asaf Ali Raod, New Delhi-110002 (PH: 7827007777) Email: prabhatbooks@gmail.com
Language : Hindi
Paperback : 312 pages
ISBN-10 : 9355211511
ISBN-13 : 978-9355211514
Item Weight : 401 g
Dimensions : 20.32 x 12.7 x 1.27 cm
Country of Origin : India
Importer : (PH: 7827007777)
Packer : Prabhat Prakashan Pvt. Ltd.,
Product Description
Price: ₹350 - ₹214.00
(as of Nov 06, 2024 18:45:55 UTC – Details)
नौ वीं कक्षा के एक विद्यार्थी ने गृहकार्य नहीं किया था। शिक्षिका ने उसे बुलाकर कारण पूछा। विद्यार्थी ने गंभीरता से कहा, ‘‘कल मेरा जन्मदिन था और शाम को हमारे घर में बहुत झगड़ा हो गया। सुबह मेरे पिताजी ने मुझे उपहार में एक पुस्तक दी थी। उसे मैं पढ़ रहा था। तभी मम्मी ने कहा कि वह बहुत थक गई है, इसलिए हलका होने के लिए वह पुस्तक उन्हें पढ़नी है। मेरी दादीजी कहती थीं कि मुझे छोटी को प्रतिदिन नई-नई कहानियाँ सुनानी होती हैं, इसलिए सबसे पहले यह पुस्तक उन्हें मिलनी चाहिए, तो मेरे दादाजी ने जिद की कि उनके पास अच्छी वाचन-सामग्री नहीं बची है, अतः वह पुस्तक उनको ही मिले। इतने में मेरे पापा ऑफिस से आए और मुझे धमकाने लगे कि गिफ्ट तो मुझे उन्होंने दी है, तो पुस्तक पहले उनको ही दूँ। इस पुस्तक के लिए घर में इतना बखेड़ा मचा कि मैं होमवर्क ही नहीं कर सका।’’ शिक्षिका ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘भला, वह कौन-सी पुस्तक है, मुझे दिखाना।’’ विद्यार्थी ने स्कूल बैग में से निकालकर पुस्तक शिक्षिका को दिखाई। शिक्षिका ने पुस्तक खोलकर कुछ पन्ने पलटे और विचार में डूब गई। उन्होंने विद्यार्थी से कहा, ‘‘तू पहले होमवर्क पूरा कर, तभी यह पुस्तक तुझे लौटाऊँगी।’’ वह सोचता रहा कि यदि आज फिर से घर में झगड़ा होगा, तो वह क्या करेगा? आप ही बताइए, वह बेचारा अब क्या करेगा?
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कहानियाँ केवल मनोरंजन के लिए नहीं होतीं, कहानियों का मानव जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है, परंतु सभी पाठक कहानी-पठन से ऐसा लाभ नहीं उठा पाते।
एक ब्राह्मण अपनी गाय लेकर दूसरे गाँव जा रहा था। तीन ठगों ने ब्राह्मण को गाय के साथ देखा और उनकी नीयत बिगड़ गई। उन्होंने ब्राह्मण के पास से गाय छीन लेने का षड्यंत्र रचा।अपनी बनाई योजना के अनुसार, पहला ठग ब्राह्मण को सामने से जाकर मिला और बोला, “क्यों महाराज! यह गधा लेकर कहाँ चले?” ब्राह्मण ने तुरंत प्रतिवाद किया, “यह गधा नहीं है, गाय है, दिखाई नहीं देता?” चोर तुरंत बोला, “किसको दिखाई नहीं देता, यह तो आप आगे जाओगे, लोग आपका उपहास करेंगे, तब आपकी समझ में आ जाएगा…मुझे क्या?”ब्राह्मण गुस्से में बड़बड़ाता हुआ आगे बढ़ा, इतने में थोड़ी देर बाद दूसरा ठग सामने से मिला, “अरे ब्राह्मण? तेरा दिमाग खराब हो गया है या और कुछ? यह गधा लेकर कहाँ चला?” ब्राह्मण इस बार तुरंत प्रतिक्रिया न दे सका। वह थोड़ा डरकर चौंक गया, मानो अपने आपसे बात कर रहा हो, इस तरह वह धीरे से बोला, “यह गधा कहाँ है, यह तो गाय है।” ठग खड़खड़ाकर जोर से हँस पड़ा, “लो इन्हें दिनदहाड़े गधे में गाय दिख रही है।” कहता हुआ चला गया।उलझन में पड़ा, विचारों में खोया ब्राह्मण सिर झुकाए आगे चला। थोड़ा आगे बढ़ा और उसे रास्ते में तीसरा ठग मिला, “पंडितजी, यह विचित्र जुलूस लेकर कहाँ निकले, बुद्धि भ्रष्ट हो गई है क्या?” ब्राह्मण चुप ही रहा। ठग ने आगे कहा, “मेहरबान, आगे बस्ती आनेवाली है, लोग पंडित को गधे के साथ देखेंगे, तो जीवनभर की इज्जत धूल में मिल जाएगी।” ब्राह्मण ने कुछ बोलने के लिए मुँह खोला, पर शब्द नहीं निकले। ठग तो गरदन हिलाने लगा, “लोगों को ऐसी कुबुद्धि कैसे सूझती है।” और वह बड़बड़ाता हुआ आगे निकल गया।अब ब्राह्मण एकदम दुविधा में पड़ गया। वह उसी जगह ठिठक गया। मुड़-मुड़कर, आँखें मल-मलकर उसने देखा, पर उसे तो अभी भी गाय ही दिखाई देती थी, परंतु तीन-तीन लोगों ने इस प्राणी को गाय नहीं, गधा कहा है। तीनों लोग तो झूठ नहीं बोलेंगे। वाकई में यह गधा हो और मुझे गाय दिख रही हो तो, सचमुच लोग मेरी हँसी उड़ाएँगे, तो क्या करूँ?
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कहानी-पठन की रीतिविभाग-1. जैसा मूल वैसा फलआत्मविश्वास का हननटोलाशाही के पूर्वग्रहपुनरावर्तन का सत्यजैसी दृष्टि, वैसा व्यवहारआप भला तो जग भलाअधकचरा सुननाचश्मा एवं दृष्टिदृष्टि परिवर्तनजैसी दृष्टि, वैसा समाचारसिद्धांतों का प्रकाशस्तंभजैसी दृष्टि, वैसी सृष्टिकहिए, आपकी पसंद क्या है?जीवन हमारा चयनआलोचकों से कैसे बचेंतीन प्रश्नों की परीक्षाकीचड़ या ताराबिना ध्यान रखे बोलनेवाला अपराधी नहीं है?आपत्ति में अवसरजीवन के अवसरबुद्धिमान गधाजोखिम उठाना चाहिए या नहीं?अवरोध या विकाससच्ची होशियारीअपमान का उपहारसमय का वजननिरर्थक पुनरावर्तन
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लेखक संजीव शाह, ओएसिस सेल्फ डेवलपमेंट के प्रशिक्षक हैं। मात्र 25 वर्ष की आयु में अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर संजीव ने मेकैनिकल इंजीनियर के अपने पेशे को छोड़ा और उन सैकड़ों युवाओं का नेतृत्व किया, जो अपने तथा समाज के विकास में योगदान करना चाहते थे। इसका परिणाम ‘ओएसिस’ नाम के युवाओं के एक संगठन के रूप में सामने आया, जिसका गठन 1989 में किया गया। आगे चलकर, राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त युवाओं का नेतृत्व करने वाले और सामाजिक कार्यकर्ता से वे एक लेखक तथा अनेक सीईओ, परिवारों, समुदायों और संगठनों को पेशेवर सलाह देने वाले की भूमिका में आए। उनके प्रबंधन में, ‘ओएसिस वैली’ नाम का एक अनोखा संस्थान वडोदरा के करीब बनाया गया है, जो चरित्र निर्माण के प्रति समर्पित अपनी तरह का पहला एकमात्र संस्थान है। उन्होंने 65 से अधिक पुस्तकों और बुकलेट की रचना की है, जिनकी 10 लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी है। इस विशिष्ट उपलब्धि ने वैज्ञानिक स्वयं-सहायता की पीढ़ी के बीच उन्हें इस क्षेत्र का सबसे सम्मानित और सर्वाधिक लोकप्रिय समसामयिक लेखक बना दिया है।
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Publisher : Prabhat Prakashan Pvt. Ltd.; First Edition (29 November 2021); Prabhat Prakashan Pvt. Ltd., 4/19, Asaf Ali Raod, New Delhi-110002 (PH: 7827007777) Email: prabhatbooks@gmail.com
Language : Hindi
Paperback : 312 pages
ISBN-10 : 9355211511
ISBN-13 : 978-9355211514
Item Weight : 401 g
Dimensions : 20.32 x 12.7 x 1.27 cm
Country of Origin : India
Importer : (PH: 7827007777)
Packer : Prabhat Prakashan Pvt. Ltd.,
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