Jyotish Sarvasva (ज्योतिष सर्वस्व) And Vedic Nakshatra Jyotish (वैदिक नक्षत्र ज्योतिष) (Set of 2 Books) In Hindi Published By Ranjan Publi…

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349.50

Jyotish Sarvasva (ज्योतिष सर्वस्व) Published By Ranjan Publications , Pages – 460 , MRP – 400 And Vedic Nakshatra Jyotish (वैदिक नक्षत्र ज्योतिष) Published By Ranjan Publications , Pages – 288 , MRP – 300 , भूमिका भारतीय ज्योतिष के विकास का इतिहास प्रायः 3000 वर्ष पुराना है। इस शास्त्र के प्रचार प्रसार एवं विस्तार में भारतवर्ष में रहने वाले प्रत्येक वर्ग के ज्ञानियों व विज्ञानियों का प्रत्यक्ष व परोक्ष उभयविध योगदान स्पष्ट प्रतिफलित है। शास्त्र चिन्तन एक निरन्तर बहने वाले अजस्र जल-स्रोत की तरह है, जिसमें ठहराव किसी मूल्य पर भी काम्य नहीं हो सकता। ठहरे हुए तड़ाग जल में जो दोष हो सकते हैं, वे ही सब बातें उस चिन्तन परम्परा में भी सहज प्रवेश पा जाती हैं, जिनसे विकास की निरन्तरता अवश्यमेव भंग होती है। सभी पुरानी बातें श्रेष्ठ नहीं हैं तथा सभी नवीन बातें भी निष्प्रयोजन व निरर्थक नहीं हो सकती हैं। जब किसी युग में पृथ्वी को अचला मान कर भारतीयों ने खगोलीय तत्त्वों का अन्वेषण किया था, तब भारतीय व विदेशी विद्वानों ने जैसे ही पृथ्वी की गति व तज्जन्य परिणामों के आधार पर शास्त्र तत्त्व का निश्चय किया तो अविलम्ब ही हम भारतीयों ने उसे अपनाकर शास्त्र में यथानुकूल परिवर्तन कर लिया था। हम भारतीय परम्परा के प्रति सर्वथा दुराग्रही नहीं हैं। इसी कारण भारत में पृथ्वी के चलने को धर्म विरुद्ध मानकर किसी भी तत्त्वान्वेषक को यहाँ आत्महत्या के लिए मजबूर नहीं किया गया था। इसी परस्पर सह अस्तित्व की भावना के कारण, ज्योतिष के क्षेत्र में विचार की विभिन्न प्रणालियाँ एक ही समय में युगपत् बिना किसी भेदभाव के प्रचलित रही हैं। भारतीय ज्योतिष के पिछले ज्ञात व इतिहास सिद्ध तीन हजार वर्षों में भारतीय ज्ञानगंगा में अनेक विचार रूपी अलकनन्दाएँ मिलती रही हैं उद्भेद ऋचो अक्षरे परमे व्योमन् यस्मिन् देवा अधिविश्वे निषेदुः । यस्तन्न वेद किमृचा करिष्यति इत् तद् विदुस्ते अमी समासते। (जो वेद मन्त्रों के अर्थों को नहीं जानता, उसे केवल मन्त्र रटने से क्या लाभ ?) ज्योतिष शास्त्र की आत्मा का स्थान नक्षत्र विचार है। तिथियाँ बाद की स्थूल हैं जबकि नक्षत्र मूलाधार हैं। वाङ्मय में इस बात बहुत से प्रमाण हैं कि प्राचीन काल में ज्योतिष का व्यवहार नक्षत्रों पर ही आधारित था। अतः नक्षत्र ज्योतिषशास्त्र की नींव है जिस पर ज्योतिष प्रवर्त्तकों, ऋषियों, मनीषियों ने वैदिक भारतीय ज्योतिष का सुरम्य प्रासाद खड़ा किया है। और वैदिक काल में ही अठाईस नक्षत्रों व उनके देवताओं का ज्ञान प्राप्त किया जा चुका था। शुभ व अशुभ नक्षत्रों का वर्गीकरण किया गया था। जन्म समय में कुछ विशेष नक्षत्रों को विशेष अशुभ माना जाता था । नक्षत्रों की आकाशीय स्थिति का सही आकलन, उनके गुण धर्म, स्वरूप व नामों को तार्किक आधार दिया गया था। उसी वैदिक शास्त्रीय विषय का उद्भेद आज हमारे सामने विशाल व विश्वव्यापी भुवन मोहन स्वरूप लिए सतत प्रगतिशील है। फलित ज्योतिष के मूल सूत्र भी वैदिक सहित्य में अनुस्यूत हैं। लेकिन जाने लगी है। आजकल फलित ज्योतिष का उपहास करना बुद्धिजीवी होने की निशानी मानी शास्त्र सदैव लगातार देशकाल, परिस्थिति के अनुसार एक सतत विचारशीलता से ओतप्रोत रहते हैं। शास्त्र का रूप निरन्तर बहती सरिता के समान होता है, वह ठहरी हुई बावड़ी नहीं है, अपितु बार-बार लगातार, निरन्तर प्रवहमान विचार गंगा में गोते लगाते हुए शास्त्र का स्वरूप दिनोंदिन निखरता हुआ दिखता है।

ASIN ‏ : ‎ B0DSSSC5SY
Publisher ‏ : ‎ Generic (14 November 2024)
Hardcover ‏ : ‎ 700 pages
Item Weight ‏ : ‎ 1 kg 30 g
Dimensions ‏ : ‎ 15 x 4.5 x 21 cm
Country of Origin ‏ : ‎ India
Packer ‏ : ‎ Ranjan Publications
Generic Name ‏ : ‎ Jyotish Sarvasva (ज्योतिष सर्वस्व) And Vedic Nakshatra Jyotish (वैदिक नक्षत्र ज्योतिष)

Jyotish Sarvasva (ज्योतिष सर्वस्व) And Vedic Nakshatra Jyotish (वैदिक नक्षत्र ज्योतिष) (Set of 2 Books) In Hindi Published By Ranjan Publi…

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Jyotish Sarvasva (ज्योतिष सर्वस्व) And Vedic Nakshatra Jyotish (वैदिक नक्षत्र ज्योतिष) (Set of 2 Books) In Hindi Published By Ranjan Publi…
Price: ₹349.50
(as of Jan 30, 2025 23:42:33 UTC – Details)



Jyotish Sarvasva (ज्योतिष सर्वस्व) Published By Ranjan Publications , Pages – 460 , MRP – 400 And Vedic Nakshatra Jyotish (वैदिक नक्षत्र ज्योतिष) Published By Ranjan Publications , Pages – 288 , MRP – 300 , भूमिका भारतीय ज्योतिष के विकास का इतिहास प्रायः 3000 वर्ष पुराना है। इस शास्त्र के प्रचार प्रसार एवं विस्तार में भारतवर्ष में रहने वाले प्रत्येक वर्ग के ज्ञानियों व विज्ञानियों का प्रत्यक्ष व परोक्ष उभयविध योगदान स्पष्ट प्रतिफलित है। शास्त्र चिन्तन एक निरन्तर बहने वाले अजस्र जल-स्रोत की तरह है, जिसमें ठहराव किसी मूल्य पर भी काम्य नहीं हो सकता। ठहरे हुए तड़ाग जल में जो दोष हो सकते हैं, वे ही सब बातें उस चिन्तन परम्परा में भी सहज प्रवेश पा जाती हैं, जिनसे विकास की निरन्तरता अवश्यमेव भंग होती है। सभी पुरानी बातें श्रेष्ठ नहीं हैं तथा सभी नवीन बातें भी निष्प्रयोजन व निरर्थक नहीं हो सकती हैं। जब किसी युग में पृथ्वी को अचला मान कर भारतीयों ने खगोलीय तत्त्वों का अन्वेषण किया था, तब भारतीय व विदेशी विद्वानों ने जैसे ही पृथ्वी की गति व तज्जन्य परिणामों के आधार पर शास्त्र तत्त्व का निश्चय किया तो अविलम्ब ही हम भारतीयों ने उसे अपनाकर शास्त्र में यथानुकूल परिवर्तन कर लिया था। हम भारतीय परम्परा के प्रति सर्वथा दुराग्रही नहीं हैं। इसी कारण भारत में पृथ्वी के चलने को धर्म विरुद्ध मानकर किसी भी तत्त्वान्वेषक को यहाँ आत्महत्या के लिए मजबूर नहीं किया गया था। इसी परस्पर सह अस्तित्व की भावना के कारण, ज्योतिष के क्षेत्र में विचार की विभिन्न प्रणालियाँ एक ही समय में युगपत् बिना किसी भेदभाव के प्रचलित रही हैं। भारतीय ज्योतिष के पिछले ज्ञात व इतिहास सिद्ध तीन हजार वर्षों में भारतीय ज्ञानगंगा में अनेक विचार रूपी अलकनन्दाएँ मिलती रही हैं उद्भेद ऋचो अक्षरे परमे व्योमन् यस्मिन् देवा अधिविश्वे निषेदुः । यस्तन्न वेद किमृचा करिष्यति इत् तद् विदुस्ते अमी समासते। (जो वेद मन्त्रों के अर्थों को नहीं जानता, उसे केवल मन्त्र रटने से क्या लाभ ?) ज्योतिष शास्त्र की आत्मा का स्थान नक्षत्र विचार है। तिथियाँ बाद की स्थूल हैं जबकि नक्षत्र मूलाधार हैं। वाङ्मय में इस बात बहुत से प्रमाण हैं कि प्राचीन काल में ज्योतिष का व्यवहार नक्षत्रों पर ही आधारित था। अतः नक्षत्र ज्योतिषशास्त्र की नींव है जिस पर ज्योतिष प्रवर्त्तकों, ऋषियों, मनीषियों ने वैदिक भारतीय ज्योतिष का सुरम्य प्रासाद खड़ा किया है। और वैदिक काल में ही अठाईस नक्षत्रों व उनके देवताओं का ज्ञान प्राप्त किया जा चुका था। शुभ व अशुभ नक्षत्रों का वर्गीकरण किया गया था। जन्म समय में कुछ विशेष नक्षत्रों को विशेष अशुभ माना जाता था । नक्षत्रों की आकाशीय स्थिति का सही आकलन, उनके गुण धर्म, स्वरूप व नामों को तार्किक आधार दिया गया था। उसी वैदिक शास्त्रीय विषय का उद्भेद आज हमारे सामने विशाल व विश्वव्यापी भुवन मोहन स्वरूप लिए सतत प्रगतिशील है। फलित ज्योतिष के मूल सूत्र भी वैदिक सहित्य में अनुस्यूत हैं। लेकिन जाने लगी है। आजकल फलित ज्योतिष का उपहास करना बुद्धिजीवी होने की निशानी मानी शास्त्र सदैव लगातार देशकाल, परिस्थिति के अनुसार एक सतत विचारशीलता से ओतप्रोत रहते हैं। शास्त्र का रूप निरन्तर बहती सरिता के समान होता है, वह ठहरी हुई बावड़ी नहीं है, अपितु बार-बार लगातार, निरन्तर प्रवहमान विचार गंगा में गोते लगाते हुए शास्त्र का स्वरूप दिनोंदिन निखरता हुआ दिखता है।

ASIN ‏ : ‎ B0DSSSC5SY
Publisher ‏ : ‎ Generic (14 November 2024)
Hardcover ‏ : ‎ 700 pages
Item Weight ‏ : ‎ 1 kg 30 g
Dimensions ‏ : ‎ 15 x 4.5 x 21 cm
Country of Origin ‏ : ‎ India
Packer ‏ : ‎ Ranjan Publications
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